Tahzeeb Hafi Shayari
ये दुख अलग है कि उससे मैं दूर हो रहा हूँ,
ये ग़म जुदा है वो ख़ुद मुझे दूर कर रहा है,
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें,
ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है।
मेरे आँसू नही थम रहे कि वो मुझसे जुदा हो गया,
और तुम कह रहे हो कि छोड़ो अब ऐसा भी क्या हो गया,
मय-कदों में मेरी लाइनें पढ़ते फिरते हैं लोग,
मैंने जो कुछ भी पी कर कहा फ़लसफ़ा हो गया।
घर में भी दिल नहीं लग रहा, काम पर भी नहीं जा रहा,
जाने क्या ख़ौफ़ है जो तुझे चूम कर भी नहीं जा रहा,
रात के तीन बजने को हैं, यार ये कैसा महबूब है?
जो गले भी नहीं लग रहा और घर भी नहीं जा रहा।
ये मैंने कब कहा कि मेरे हक़ में फ़ैसला करे,
अगर वो मुझ से ख़ुश नहीं है तो मुझे जुदा करे,
मैं उसके साथ जिस तरह गुज़ारता हूँ ज़िंदगी,
उसे तो चाहिए कि मेरा शुक्रिया अदा करे।
क्या ग़लत-फ़हमी में रह जाने का सदमा कुछ नहीं,
वो मुझे समझा तो सकता था कि ऐसा कुछ नहीं,
इश्क़ से बच कर भी बंदा कुछ नहीं होता मगर,
ये भी सच है इश्क़ में बंदे का बचता कुछ नहीं।
तिलिस्म-ए-यार ये पहलू निकाल लेता है,
कि पत्थरों से भी खुशबू निकाल लेता है,
है बे-लिहाज़ कुछ ऐसा की आँख लगते ही,
वो सर के नीचे से बाजू निकाल लेता है।
कोई समंदर, कोई नदी होती कोई दरिया होता,
हम जितने प्यासे थे हमारा एक गिलास से क्या होता,
ताने देने से और हम पे शक करने से बेहतर था,
गले लगा के तुमने हिजरत का दुख बाट लिया होता।
तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है,
मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो
तो फिर ये बताओ कि तुम
उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो?
ये ज्योग्राफिया, फ़लसफ़ा,
साइकोलाजी, साइंस, रियाज़ी वगैरह
ये सब जानना भी अहम है
मगर उसके घर का पता जानते हो ?