वतन शायरी, लहू वतन के शहीदों का

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लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है,
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी।

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मिटने वालों का बाकी यही निशां होगा।

नाक़ूस से ग़रज़ है न मतलब अज़ां से है,
मुझ को अगर है इश्क़ तो हिन्दोस्तां से है।

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दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त,
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी।

वतन के जां-निसार हैं वतन के काम आएंगे,
हम इस ज़मीं को एक रोज़ आसमां बनाएंगे।

जिंदगी जब तुझको समझा, मौत फिर क्या चीज है,
ऐ वतन तू हीं बता, तुझसे बड़ी क्या चीज है।

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शायरी आजादी की शाम न होने देंगे

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